Pradosh Vrat katha or Vidhi - Bagawan Shiva ke liye sabse Sukhad Din

प्रदोष व्रत प्रदोषम के नाम से भी जाना जाता है और सनातन धर्म के अनुयायियों द्वारा सबसे बड़ा पवित्र व्रत माना जाता है. प्रदोष व्रत और पूजा कृष्णपक्ष के 13 वें दिन पर की जाती है जो भगवान् शिव और देवी पार्वती को समर्पित है. प्रदोष व्रत कथा और विधि जानिए|

प्रदोष व्रत क्यों रखते है ?

ऐसा विश्वास है की इस अवधि के दौरान भगवान् शिव अत्यंत प्रसन्न रहते है और अपने सभी भक्तों को आशीर्वाद देते है , प्रदोष काल के दौरान या त्रयोदशी के दिन उनकी सभी इच्छाओं की पूर्ति करते है. शिव के भक्त मोक्ष प्राप्ति और अपने स्वप्न के पूर्ति के लिए प्रदोष का व्रत करते है.

प्रदोष व्रत कब करते है?

प्रदोष व्रत की पूजा त्रयोदशी तिथि के संध्याकाल में दोनों चंद्र्पक्ष के शुक्ल और कृष्ण पक्ष पर की जाती है. ये नव-चंद्रोदय या पूर्ण चन्द्र ; अमावस्या और पूर्णिमा से तेरहवीं तिथि या चन्द्र तिथि होती है.
प्रदोष व्रत मुख्य रूप से पांच प्रकार के होते है:
  1. नित्य प्रदोष – यह व्रत हर संध्याकाल में सूर्यास्त के समय के बीच में किया जाता है जब तक की सभी तारें आकाश में नजर आते है.
  2. पक्ष प्रदोष – यह व्रत अमावस्या के बाद हर चौथे दिन की जाती है.
  3. मास प्रदोष – यह व्रत हर माह के संध्या कृष्ण पक्ष त्रयोदशी (पूर्ण चन्द्र के बाद 13 वें चन्द्र दिन) में माह में दो बार किया जाता है.
  4. महा प्रदोष – यह व्रत कृष्ण पक्ष त्रयोदशी में संध्याकाळ में किया जाता है जो की शनिवार को आता है.
  5. प्रलय प्रदोष – वह समय जब पूरी सृष्टि भगवान् शिव के साथ विलय होकर नाश होने जा रही थी. प्रदोष व्रत नव-चंद्रोदय के बाद प्रत्येक तेरहवें चन्द्र पक्ष को पति और पत्नी एकसाथ दुखों से मुक्त होने की आशा में और भौतिक सुख-समृद्धि पाने के लिए करते है.
प्रदोष व्रत जो सोमवार को पड़ता है उसे सोम प्रदोष या प्रदोषम कहते है. जो मंगलवार को पड़ता है उसे भौम प्रदोष / प्रदोषम कहते है और जो शनिवार को पड़ता है उसे शनि प्रदोषम कहते है.

प्रदोष व्रत का आरम्भ (प्रदोष व्रत कथा)

पुराणों में प्रदोष व्रत की रोचक कथा का वर्णन है जो की भगवान् विष्णु के परामर्श से हुए समुन्द्रमंथन् से जुड़ा हुआ है. अत्यंत प्रसिद्ध अमृत- जिसमें किसी को भी अमर बना देने की क्षमता थी उसे समुंद्र को मथ कर निकाला गया था. देवताओं और दानवों ने मिलकर इस मंथन को किया जिससे अमृत के साथ-साथ एक अत्यंत शक्तिशाली विष भी निकला जो समस्त सृष्टि का नाश करने की क्षमता रखता था. और आगे पड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे 

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